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छत्तीसगढ़ की बेटी ने फिर बढ़ाया मान : बिलासपुर की निशू सिंह ने अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो पर फहराया देश का तिरंगा, 3 दिन में हासिल की कामयाबी


बिलासपुर : छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर की निशु सिंह ने अफ्रीका के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट किलिमंजारो की 5685 मीटर ऊंची चोटी पर तिरंगा लहरा दिया है। निशु ने 22 अप्रैल को यह उपलब्धी हासिल की है। निशु ने 3 दिन में इस चढ़ाई को पूरा किया है। बता दें कि निशु सिंह का यह पहला अंतर्राष्ट्रीय पर्वतारोहण है। निशु की इस उपलब्धी पर शहर के लोगों ने खुशी जाहिर की है।
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निशु इससे पहली भी देश की 10 ऊंची पर्वत चोटियों पर चढ़ाई कर तिरंगा फहरा चुकी हैं। निशु बिलासपुर के भरनी में रहती हैं और उनके पिता विपिन कुमार सिंह CRPF में सिपाही रह चुके हैं। आपको बता दें कि निशु के लिए सफर बिल्कुल आसान नहीं रहा है। उन्हें इस सफलता को हासिल करने काफी संघर्ष करना पड़ा है। उनका हौसला और लगन ही है कि उनकी कई लोगों ने काफी मदद भी की है।

काफी मुश्किल थे ये सफर
आपको बता दें कि हिंदुस्तान फाऊंडेशन की तरफ से माउंट किलिमंजारो जाने के लिए प्रतिभागियों का चयन किया गया था। जिसमें निशु के अलावा बिहार के पर्वतारोही अभिषेक रंजन भी शामिल थे। फाऊंडेशन के सदस्य ने बताया कि निशु ने 19 अप्रैल को इस सफर को शुरू कर दिया था जो 22 अप्रैल को जाकर पूरा हुआ। इस दौरान उन्हें कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा। चढ़ाई करते समय ठंड इतनी ज्यादा हो चुकी थी कि चला भी नहीं जा रहा था,इसके बावजूद निशू ने इस सफर को पूरा कर न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया है।
NTPC सीपत ने दी बधाई
निशु की इस उपलब्धी पर NTPC सीपत के निदेशक पदमकुमार राजशेखरन ने भी खुशी जाहिर की है। निशु की इस कामयाबी में NTPC का भी हाथ रहा है। आपको बताते चलें कि NTPC सीपत को इस बात की जानकारी मिली थी कि निशु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्वतारोहण करना चाहती हैं और इससे पहले भी उन्होंने देश की 10 ऊंची पर्वत चोटियों पर चढ़ाई कर तिरंगा फहराया है। इसी के मद्देनजर NTPC के अधिकारियों ने न सिर्फ उनका हौसला बढ़ाया, बल्कि उनकी आर्थिक रूप से मदद भी की । जिसके चलते निशु का सफर आसान हो गया।
छत्तीगसगढ़ के चित्रसेन साहू भी कर चुके हैं ये कमाल
इससे पहले भी छत्तीगसगढ़ की राजधानी रायपुर के रहने वाले चित्रसेन साहू ने भी अफ्रीका के किलिमंजारो की 5685 मीटर ऊंची चोटी गिलमंस पर तिरंगा लहराया दिया था । उन्होंंने 2 साल पहले 23 सिंतबर को यह उपलब्धि हासिल की थी। एक हादसे में अपने दोनों पैर गंवा देने वाले चित्रसेन ने इस चढ़ाई को प्रोस्थेटिक लेग के दम पर किया और ये पहाड़ चढ़ने वाले वे देश के पहले दिव्यांग बन गए थे।



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CG : पिता को नक्सलियों ने गांव से भगाया, बेटे ने जीता राष्ट्रीय मल्लखंभ प्रतियोगिता ; गिनीज बुक आफ रिकार्ड के नामांकन राशि के लिए CM बघेल ने दिए निर्देश


- अबूझमाड़ से निकलकर 12 साल के राकेश ने जीती राष्ट्रीय मल्लखंभ प्रतियोगिता
- इंडिया बुक आफ रिकार्ड में शामिल हुआ नाम
- पहले और दूसरे दोनों स्थान पर अबूझमाड़ के खिलाड़ी
रायपुर : छत्तीसगढ़ के सुदूर गांव अबूझमाड़ के रहने वाले 12 साल के राकेश वर्दा को चार साल पहले अपने पिता के साथ ओरछा गांव छोड़ना पड़ा था. बेटे की खेल में रूचि को देखते हुए नक्सलियों ने पिता को धमकी दी ओर बेटे को खेलना बंद करने को कहा. ऐसा ना करने पर नक्सलियों ने राकेश के पिता को गांव छोड़ने को कहा. पिता ने बेटे की रुचि को प्राथमिकता दी और उसे कुतुलगरपा गांव ले आए. यहां 8 साल के राकेश वर्दा को छत्तीसगढ़ स्पेशल टास्क फोर्स में काम करने वाले मनोज प्रसाद मिले जो मल्लखंब के प्रशिक्षक हैं.
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नई जगह में राकेश के जज्बे को एक नई रौशनी मिली और महज 12 वर्ष की उम्र में राकेश ने महाराष्ट्र के गोरेगांव में आयोजित राष्ट्रीय मल्लखंब हैंडस्टैंड प्रतियोगिता का खिताब अपने नाम कर लिया. राकेश ने 1 मिनट 6 सेकेंड तक हैंडस्टैंड करते हुए न सिर्फ विजेता का खिताब जीता बल्कि भारत और विश्व के लिए एक नया कीर्तिमान भी स्थापित कर दिया. इससे पहले भारत का बेस्ट रिकार्ड 30 सेकेंड का था.

मल्लखंभ हैंडस्टैंड प्रतियोगिता के लिए देश भर के 1000 खिलाड़ी शामिल हुए थे. खास बात ये है कि दूसरा स्थान भी अबूझमाड़ के रहने वाले 11 साल के राजेश कोर्राम ने प्राप्त किया. इस प्रदर्शन के साथ ही राकेश का नाम इंडिया बुक आफ रिकार्ड्स में दर्ज हो गया है. राकेश ने इस प्रदर्शन के लिए गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड के लिए भी आवेदन किया है जिसे स्वीकार कर लिया गया है. लेकिन इस आवेदन के लिए जरूरी 80 हजार रूपए की फीस भर पाने में राकेश समर्थ नहीं है. राकेश की इस उपलब्धि के लिए मुख्यमंत्री ने हाथ मिलाकर उसे बधाई दी और गिनीज बुक आफ रिकार्ड्स के नामांकन में राकेश की मदद के लिए मुख्यमंत्री ने कलेक्टर नारायणपुर को निर्देश दिए.
राष्ट्रीय मल्लखंब हैंडस्टैंड प्रतियोगिता जीतने वाले राकेश वर्दा समेत छत्तीसगढ़ के 10 खिलाड़ियों का चयन हरियाणा में आयोजित होने वाले खेलो इंडिया प्रोग्राम के लिए किया गया है. अबूझमाड़ के जंगलों से निकलकर देश में पहचान बनाने वाले 12 साल के राकेश वर्दा के प्रदर्शन से पूरा छत्तीसगढ़ गौरवांवित है.


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छत्तीसगढ़ : जब मंटूराम ने मुख्यमंत्री को बताया कि पत्नी संग रातभर करता हूं गोबर की चौकीदारी


- मैं और मेरी पत्नी रातभर दो शिफ्ट में टॉर्च लेकर रखते हैं गोबर पर नजर : मंटूराम
- गोधन न्याय योजना में गोबर बेचकर मिले 28 हजार रुपये तो मकान कराया रिपेयर, अब नहीं टपकती छत
रायपुर : गोबर की चौकीदारी। जी हां, सुनने में अटपटा जरूर लगेगा लेकिन ये सच है । छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के कुटरू में रहने वाले किसान मंटू राम कश्यप गोबर की चौकीदारी करते हैं , और ये बात मंटूराम ने स्वयं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बतायी । मौका था बीजापुर जिले के कुटरू में आयोजित भेंट मुलाकात कार्यक्रम का।
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मुख्यमंत्री को मंटूराम ने बताया कि मैं रात में टॉर्च लगा कर गोबर की चौकीदारी करता हूं , और इस काम मे मेरी पत्नी भी मेरा साथ देती हैं । उन्होंने बताया कि वे छत्तीसगढ़ सरकार की गोधन न्याय योजना के तहत गोबर बेचते हैं।

"गोबर की चौकीदारी"
ये मज़ाक नहीं,बल्कि सच्चाई है। @DistrictBijapur के कुटरू के किसान मंटू राम ने बड़े भोलेपन से मुख्यमंत्री श्री @bhupeshbaghel को गोबर की चौकीदारी की बात बताई,जिस गोबर की कल तक कोई कीमत नहीं थी।आज उसी #गोधन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूती हो रही है। #BhetMulakat pic.twitter.com/JEnGJmQieO— CMO Chhattisgarh (@ChhattisgarhCMO) May 19, 2022
मंटूराम ने बताया कि अब तक उन्होंने लगभग 14 हजार किलो गोबर करीब 28 हजार रु में बेचा है । बकौल मंटूराम पहले गोबर को कोई नहीं पूछता था लेकिन अब हर किसी की नजर गोबर पर लगी रहती है । कुछ दिन पहले उनके इकठ्ठे किये गोबर को गांव के कुछ लोग उठा ले गए थे । इसके बाद उन्होंने तय किया कि पत्नी के साथ रात में गोबर की निगरानी करेंगे।
पत्नी के साथ शिफ्ट में चौकीदारी – मंटूराम गोबर की चौकीदारी रातभर करते हैं । उनके इस काम मे उनकी पत्नी भी साथ देती हैं । वे कहते हैं कि रातभर जागना संभव नहीं है । इसलिए वे और उनकी पत्नी दो शिफ्ट में गोबर की देखरेख करते हैं । रात में कुछ देर मैं फिर मेरी पत्नी टॉर्च लेकर गोबर की निगरानी करते हैं ।
आखिर क्यों पड़ी चौकीदारी की जरूरत- मंटूराम बताते हैं कि रात में टॉर्च लेकर वे कई बार देखने जाते हैं कि गोबर कोई ले तो नहीं गया । वे कहते हैं कि जब से गोबर की कीमत मिलने लगी है, तब से गोबर सहेजकर रखना पड़ता है । एक दिन इकठ्टा किया हुआ गोबर कुछ लोग चुपचाप उठा ले गए । इसके बाद से गोबर की निगरानी करने लगा।
गोधन न्याय योजना से मिले रुपयों से रिपेयर कराया मकान – मंटुराम कश्यप ने बताया कि उनके पास 15 गाय- भैंसे हैं । अब तक गोधन न्याय योजना से गोबर बेचकर करीब 28 हजार रुपये मिले हैं । उन्होंने बताया कि उनके मकान से पानी टपकता था । जिसे बहुत दिन से रिपेयर कराना चाहते थे । गोबर बेचकर मिले पैसे से उन्होंने मकान रिपेयर करा लिया है । मकान में प्लास्टर भी करा लिया है । अब छत से पानी टपकने की समस्या भी खत्म हो गयी है ।


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CG : कभी नक्सली कमांडर रहे मड़कम मुदराज ने CM को सुनाई आपबीती…कहा आत्मग्लानि में किया सरेंडर, आज हूं इंस्पेक्टर : देखिए वीडियो


- मेरे बच्चे पढ़ रहे इंग्लिश मीडियम स्कूल में और जी रहे अच्छी लाइफ स्टाइल
- मड़कम के हाथों में हथियार अब भी, लोगों की जान लेने नहीं बल्कि बचाने के लिए
- मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इंस्पेक्टर मड़कम को अपने पास बुलाकर कंधे पर हाथ रखा और बजवायी ताली
सुकमा : कभी नक्सली संगठन में कमांडर रहे मड़कम मुदराज ने कोंटा में आयोजित भेंट-मुलाकात कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को आप बीती सुनाई और कहा कि मैं आपसे हाथ मिलाना चाहता हूं। इस पर मुख्यमंत्री ने बड़ी आत्मीयता से मड़कम के कंधे पर हाथ रखा और हाथ भी मिलाया।
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मड़कम ने कहा- “मुख्यमंत्री जी आपने सड़क, कैम्प और स्कूलों को सुधारकर नक्सल प्रभावित इलाके की तस्वीर बदल दी है। अब यहाँ लोगों में नक्सलियों का खौफ नहीं बल्कि आगे बढ़ने की चाहत है। यहां के लोग सरकार की योजनाओं का लाभ भी उठा रहे हैं।” मुख्यमंत्री ने मड़कम के मुख्यधारा में लौटने पर सराहना की और उनके लिए ताली भी बजवायी। देखिए विडियो :

इंस्पेक्टर मड़कम मुदराज बदलते छत्तीसगढ़ का एक नायाब उदाहरण हैं।कभी माओवादी रहे मड़कम के बच्चे आज अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ रहे हैं।आत्मसमर्पण के बाद एसपीओ से अब वह इंस्पेक्टर बन गए हैं।उन्होंने मुख्यमंत्री श्री @bhupeshbaghel को धन्यवाद दिया और क्या कहा,सुनिए-#BhetMulakat pic.twitter.com/RRxXc0YlOR
— CMO Chhattisgarh (@ChhattisgarhCMO) May 18, 2022
मड़कम के हाथों में बंदूक पहले भी थी और आज भी है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले खौफ ग्रामीणों में था और आज नक्सली इनके नाम से कांपते हैं। मड़कम ने बताया कि वे राह भटककर नक्सली संगठन में शामिल हो गए थे। लेकिन अपने ही भाई बन्धुओं का खून बहाने से आत्मग्लानि के चलते नींद नहीं आती थी। फिर एक दिन आत्मसमर्पण करने की ठान ली। आत्मसमर्पण के बाद एसपीओ बने। इसके बाद सिपाही, एएसआई, एसआई और अब डीआरजी में इन्स्पेक्टर हैं।
पत्नी को भी दी थी नक्सली ट्रेनिंग- मड़कम बताते हैं कि कभी उनकी पत्नी भी उनके साथ संगठन में थीं। मैं ही उसे ट्रेनिंग देता था लेकिन हम दोनों ने तय किया कि अब खून-खराबे की जिंदगी नहीं जीना है। जिनके खिलाफ हमने बन्दूक उठाई है वे हमारे ही भाई-बहन हैं। मुख्यधारा में लौटकर अच्छा जीवन जीना है।
आज बच्चे जी रहे अच्छी लाईफ स्टाइल-
मड़कम कहते हैं कि आज वे उच्च पद पर पहुँच गए हैं। सैलरी भी अच्छी है। इस कारण बच्चों को अच्छे से पढ़ा पा रहे हैं। मेरे तीनों बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहे हैं और अच्छी लाइफ स्टाइल जी रहे हैं। अगर आज नक्सली संगठन में होता तो इन सब चीजों की कल्पना भी नहीं कर सकता था।


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