बच्चों के लिए गुजाराभत्ता देने के एक मामले में अदालत ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है। अदालत ने कहा है कि अगर बेटा बालिग है तो भी वह अपने पिता से गुजाराभत्ता पाने का हकदार है। सिर्फ बालिग बेटी को ही शादी तक गुजाराभत्ता पाने का अधिकार नहीं है।
साकेत कोर्ट स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आरके सिंह की अदालत ने एक व्यक्ति की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने कहा था कि पत्नी के साथ रह रहा बेटा बालिग हो चुका है। अब उसे गुजाराभत्ता देने की जरूरत नहीं है। इस पर अदालत ने टिप्पणी की कि सामान्य परिवारों में बच्चे बालिग होने के कई साल बाद तक अपनी शिक्षा जारी रखते हैं। उनका तमाम खर्च पिता अथवा माता-पिता दोनों उठाते हैं। यहां तक कि बालिग के बच्चे के अच्छी नौकरी में जाने तक यह सिलसिला जारी रहता है। फिर पिता से अलग रहने वाले बेटे को यह अधिकार क्यों नहीं मिलना चाहिए।
अदालत ने यह भी कहा कि पारिवारिक विवाद के कारण मां के साथ अलग रहने वाले बच्चे को तो अधिक सहायता की आवश्यकता होती है। पिता की मासिक आमदनी भी अच्छी-खासी है। फिर उसे बालिग बेटे को गुजाराभत्ता देने में आपत्ति क्यों है। अदालत ने कहा कि मां के साथ रह रहे बेटे के साथ पिता का यह व्यवहार अस्वीकार्य है। अदालत ने यह भी कहा कि यह कानूनी ही नहीं नैतिक जिम्मेदारी भी है।
बालिग बेटी को गुजाराभत्ता देने का है प्रावधान : इससे पहले आए कई बड़े फैसलों से यह निर्धारित हो गया था कि बालिग बेटी शादी होने तक शिक्षा से लेकर विवाह तक के तमाम खर्च पिता से ले सकती हैं। इसके लिए पिता इनकार नहीं कर सकता, लेकिन अब इस फैसले ने शिक्षा प्राप्त कर रहे बालिग बेटे को भी यह भत्ता पाने का रास्ता खोल दिया है।
गुजाराभत्ता कम करने का कर सकता है आग्रह
अदालत ने याचिकाकर्ता पिता को कहा है कि वह बेटे के बालिग होने के आधार की बजाय अपनी आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए संशोधन की मांग कर सकता है। वह यह कह सकता है कि गुजाराभत्ता रकम अधिक है, लेकिन यह नहीं कह सकता कि वह बालिग बेटे को गुजाराभत्ता नहीं देगा।
सत्र अदालत का फैसला मानने के निर्देश दिए
याचिकाकर्ता पिता ने बालिग बेटे का गुजाराभत्ता बंद करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उसका कहना था कि मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने बेटे का गुजाराभत्ता बांधा हुआ है। इस पर हाईकोर्ट ने कहा था कि इस बाबत सत्र अदालत उचित निर्णय करेगी।