Thursday, March 28, 2024

सोमवार विशेष : छत्तीसगढ़ के इस मंदिर में शिवलिंग से अलग-अलग समय में आती है अलग-अलग खुशबू, जानिए रहस्य

गंधेश्वर महादेव शिवलिंग स्थापित है छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक नगरी महासमुंद जिले के सिरपुर में, जो राजधानी रायपुर से सडक़ मार्ग के रास्ते से 85 किलोमीटर और महासमुंद जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर स्थित है. सिरपुर जिसे पुरातन समय का बौद्ध नगरी कहा जाता है.

महासमुंद : भगवान शिव के 11 ज्योतिर्लिंग के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या किसी को पता है कि भगवान शिव का एक ऐसा शिवलिंग भी है जो सुगंधों की बौछार करता रहता है. भगवान शिव का यह शिवलिंग स्थापित है छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक नगरी महासमुंद जिले के सिरपुर में, जो राजधानी रायपुर से सडक़ मार्ग के रास्ते से 85 किलोमीटर और महासमुंद जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर स्थित है. सिरपुर जिसे पुरातन समय का बौद्ध नगरी कहा जाता है. जिसे भगवान शिव की महिमा को देखते हुए छत्तीसगढ़ का बाबा धाम भी कहा जाता है और जिसे पुरातात्विक धरोहरों को देखते हुए छत्तीसगढ़ का पुरातात्विक नगरी के नाम से भी पुकारा जाता है.

इसी सिरपुर में महानदी के तट पर स्थित है भगवान शिव का वो अद्भूत शिवलिंग, जिसे भगवान गंधेश्वर के नाम से जाना जाता है. भगवान गंधेश्वर की महिमा को जानने और शिवलिंग से आने वाली गंध की सच्चाई पता करना न्यूज़18 की टीम महासमुंद जिला मुख्यालय से सडक़ मार्ग के रास्ते 40 किलो मीटर की दूरी तय कर सिरपुर पहुंची. जहां सिरपुर में महानदी के तट के किनारे मनोरम दृश्य के साथ भगवान गंधेश्वर विराजमान हैं. भगवान शिव के इस अद्भूत शिवलिंग से निकलने वाली खुशबू को परखने हम भगवान गंधेश्वर के मंदिर में प्रवेश किये और वहां पहुंचे जहां, गर्भ गृह में भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित है और जिसे भगवान गंधेश्वर के नाम से पुकारा जाता है. भगवान की इस महिमा का आभास लेने हमने पहले भगवान की पूजा अर्चना की. उसके बाद भगवान के शिवलिंग को स्पर्श किया. यकिन मानिए इसके बाद हमारे हाथों में एक अजीब सी खुशबू थी. जो तुलसी के पौधे की तरह थी. या ये कहें कि तुलसी जैसी खुशबू हाथों से आ रही थी.

आठवीं सदी में हुआ था मंदिर का निर्माण

महानदी के तट पर भगवान शिव की पूजा यहां गंधेश्वर महादेव के रूप में की जाती है. नदी तट से बिल्कुल लगे इस मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी में बालार्जुन के समय में बाणासुर ने कराया था. भगवान शिव की शिवलिंग से निकलने वाली सुगंध के बारे में पता लगाने हमने मंदिर के पुजारी नंदाचार्य दूबे से बात की. उन्होंने बताया कि, इसके बारे में एक देव कथा है कि सिरपुर 8वीं शताब्दी में बाणासुर की विरासत थी. वो शिव के उपासक थे .वह हमेशा शिव पूजा के लिए काशी जाया करते थे और वहां से एक शिवलिंग भी साथ में ले आया करते थे. कथा के मुताबिक एक दिन भगवान शंकर प्रगट होकर बाणासुर से बोले कि तुम हमेशा पूजा करने काशी आते हो, अब मैं सिरपुर में ही प्रगट हो रहा हूं. इस पर बाणासुर ने कहा कि भगवान मैं सिरपुर में काफी संख्या में शिवलिंग स्थापित कर चुका हूं. उसने भोलेनाथ से पूछा कि जब वो प्रगट होंगे तो उन्हें पहचाना कैसे जाए. इस पर शम्भू ने कहा कि, जिस शिवलिंग से गंध का अहसास हो, उसे ही स्थापित कर पूजा करो. तब से सिरपुर में शिव जी की पूजा गंधेश्वर महादेव के रूप में की जाती है. मान्यता है कि अभी भी गर्भगृह में शिवलिंग से कभी सुगंध तो कभी दुर्गंध आती है, इसलिए ही यहां भगवान शिव को गंधेश्वर के रूप में पूजते हैं. मंदिर के पुजारी के मुताबिक यहां अलग-अलग समय में अलग-अलग खुश्बुओं का एहसास होता है.

भगवान शिव का यह अद्भुत शिवलिंग क्या वाकई 8वीं शताब्दी से है या फिर खुदाई से निकला है. इस बात पुरातत्व विभाग से जुड़े गाइड सत्यप्रकाश ओझा ने बताया कि भगवान शिव का यह शिवलिंग यहां पुरातत्व विभाग को खुदाई से नहीं बल्कि आदीकाल से स्थित है. उन्होंने बताया कि वैसे तो सिरपुर में अनेक शिवलिंग है, लेकिन पुरातत्व विभाग को खुदाई के दौरान अलग से 21 शिवलिंग मिले हैं. खुदाई में प्राप्त शिवलिंगों में भगवान गंधेश्वर की तरह खुशबू नहीं आती. उन्होंने बताया कि महानदी के किनारे होने के कारण मंदिर का काफी हिस्सा सालों पहले पानी और भूकंप के कारण भूमिगत हो गया था. जिसे फिर से रिनोवेट कराया गया है. उन्होंने बताया कि इसे छत्तीसगढ़ का बाबा धाम भी कहा जाता है. जहां हजारों के तादात में कांवरिया दूर-दूर से सावन में जल चढ़ाने आते है. मान्यता है कि यदि कोई सच्चे मन से भगवान गंधेश्वर से कामना करे तो वो उसकी मुरादे जरूर पूरी करते हैं. सिरपुर में वैसे तो कई पुरातात्विक धरोहर है, इसी के चलते लंबे समय से इसे वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल करने की मांग चल रही है.

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