Tuesday, March 19, 2024

Vikram Vedha Review: एक्शन, रोमांच से भरपूर परफेक्ट मसाला फिल्म है ‘विक्रम वेधा’

बॉलीवुड वर्सेज साउथ इंडस्ट्री कितनी भी ट्रेंड कर ले लेकिन कहानियों के मामले में एक दूसरे से इंस्पायर होते रहे हैं. ऋतिक रोशन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह बात कबूली थी कि जबसे उन्होंने विजय सेतुपति और आर माधवन की विक्रम वेधा देखी है, तब से वो इस किरदार के लिए मेनिफेस्ट कर रहे हैं.

एक लंबे समय के बाद ऋतिक का यह सपना पूरा होता नजर आया है और वो सैफ अली खान के साथ सिल्वर स्क्रीन पर लेकर आए हैं विक्रम वेधा का फ्रेम टू फ्रेम हिंदी रीमेक. फिल्म साउथ वर्जन के मुकाबले अपनी मानकों पर कितनी खरी उतरती है. ये जानने के लिए पढ़ें रिव्यू.

विक्रम बेताल की कहानियां हमारे बचपन का अहम हिस्सा रही हैं. फिल्म की शुरूआत में एनिमेशन के जरिए राजा विक्रमादित्य और बेताल की कहानी को स्टैबलिश किया गया है. उसी का प्रतिकात्मक रूप बनाया गया है विक्रम यानी (सैफ अली खान) और वेधा( ऋतिक रोशन). ठीक बेताल की तरह वेधा भी विक्रम को कहानियां सुनाकर उससे सही जवाब देने को कहता है.

कहानी

लखनऊ में तैनात एसएसपी विक्रम (सैफ अली खान) स्पेशल टास्क फोर्स का हिस्सा है. शहर के खूंखार क्रिमिनल वेधा (ऋतिक रोशन) को पकड़ना इस फोर्स का मिशन है. एक ओर जहां वेधा पर 16 मर्डर के इल्जाम हैं, वहीं विक्रम भी 18 एनकाउंटर कर चुका है. फोर्स अभी वेधा को पकड़ने के लिए जाल बिछा ही रही होती है कि खुद वेधा आकर सरेंडर कर देता है. इंट्रोगेशन के दौरान वो विक्रम को पहेलीनुमा कहानी सुनाता है, जिसका जवाब वो उससे मांगता है.

दरअसल विक्रम का जवाब ही वेधा की प्लानिंग का हिस्सा होता है. वेधा का एनकाउंटर का प्लान चल ही रहा होता है कि इसी बीच वकील आकर उसकी जमानत कर देता है. टॉम एंड जेरी की इस रेस में जब-जब वेधा, विक्रम की गिरफ्त में आता है, वो अपने सवालों से उसे उलझा देता है. सही-गलत, सच-झूठ की इस पहेली को सुलझाते-सुलझाते कहानी आखिर में क्या मोड़ लेती है, इसके लिए आपको थिएटर की ओर रूख करना होगा.

डायरेक्शन

यह 2017 में तमिल में आई फिल्म विक्रम वेधा की ही रीमेक है. बता दें, हिंदी को भी पुष्कर-गायत्री ने ही लिखा है. कहानी हु-ब-हु पर्दे पर उतार दी गई है, स्टोरी के साथ किसी तरह का छेड़छाड़ नहीं किया गया है. फिल्म के साथ ज्यादा एक्स्पेरिमेंट नहीं कर मेकर्स ने सही डिसीजन लिया है. पैसा-वसूल इस मसाला फिल्म में कुछ लूप-होल्स हैं, जिसे सिनेमैटिक लिबर्टी के नाम पर इग्नोर किया जा सकता है.

फर्स्ट हाफ थोड़ी खींची सी लगती है. खासकर इंटरवल की शुरूआत होने से पहले बारिश के फाइट सीक्वेंस, उसे खींचने की जरूरत बिलकुल नहीं थी. किरदारों का प्रभाव डालने के लिए स्लो मोशन का इस्तेमाल किया गया है, वो थोड़ा टू मच है. वहीं सेकेंड हाफ फिल्म अपनी रफ्तार पकड़ती है. जब-जब ऋतिक सैफ स्क्रीन पर साथ आते हैं, तो उन्हें देखना इंट्रेस्टिंग लगता है. सभी किरदारों में गहराई है, और लेयर्ड से भरपूर है, जिससे आप उनसे खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हैं.

हां, इस फिल्म की खासियत यही है कि कौन विलेन है या कौन हीरो, इसे समझने की कोशिश करते हैं कि क्लाइमैक्स आ जाता है. पूरी फिल्म के दौरान एक इंट्रेस्टिंग हिस्सा तब आता है, जब मेजर फाइट सीक्वेंस के बीच राज कपूर का फेमस गाना किसी की मुस्कुराहटों पर हो निसार रेडियो में बजता है. यह एक्सपेरिमेंट खूबसूरत लगता है.

फिल्म का संवाद वाकई इंपैक्टफुल रहा है. एक ओर ऋतिक इतने स्टाइलिश और हैंडसम लगे हैं, तो वहीं उनका यूपी के डायलेक्ट में हिंदी बोलना थोड़ा हास्यस्पद लगता है. पूरी फिल्म के दौरान उनकी डायलॉग डिलीवरी इरीटेट सी करती है. वहीं अपनी पिछली फिल्मों की वजह से सैफ की यूपी डायलेक्ट में अच्छी पकड़ है, वो काफी सटल लगते हैं.

टेक्निकल

टेक्निकली फिल्म बहुत ही मजबूत रही है. ओरिजनल फिल्म के ही सारे टेक्निशन इसमें शामिल किए गए हैं. पीएस विनोद की सिनेमैटोग्राफी कमाल की रही है. लखनऊ व यूपी के फ्लेवर को उन्होंने कैमरे में परफेक्ट तरीके परोसा है. बैकग्राउंड स्कोर इस फिल्म की जान है. सैम सीएस का यह स्कोर किरदारों को प्रभावी बनाने में और मदद करता है. एडिटिंग की बात करें, तो ए रिचर्ड केविन थोड़ा सा निराश करते हैं. बेशक एल्कोहलिया बेहतरीन गाना है लेकिन फिल्म के दौरान उसे फिट करने का डिसीजन सही नहीं था, कहानी के कंटीन्यूनिटी और पेस में खलल सा महसूस होता है. फिल्म का एक्शन जबरदस्त रहा है. इस पार्ट पर पूरी एक्शन टीम ने अपना काम इमानदारी से किया है.

एक्टिंग

ऋतिक रोशन जब-जब स्क्रीन पर आते हैं, सीटी बजनी तो तय है. एक खूंखार क्रिमिनल को उन्होंने स्क्रीन पर खूबसूरती से निभाया है. अगर उनके डायलॉग को इग्नोर करें, तो भरपूर एक्शन और एक्सप्रेशन से ऋतिक दिल जीत लेते हैं. वहीं सैफ अली खान भी पुलिस ऑफिसर के किरदार में दमदार लगे हैं. सैफ का काम कमाल का है. डायलॉग्स और एक्शन सीक्वेंस पर उन्हें दस पर दस मिलने चाहिए. राधिका आप्टे लॉयर और सैफ की पत्नी के रूप में जचीं हैं. कम स्क्रीन स्पेस के बावजूद वो अपनी छाप छोड़ जाती हैं. शारिब हाशमी यहां हैरान करते हैं. उनके किरदार को इग्नोर किया ही नहीं जा सकता है. बेहतरीन एक्टर हैं और काम भी बहुत उम्दा किया है. रोहित सराफ, योगिता बिहानी और सत्यदीप मिश्रा ने अपना काम पूरी इमानदारी से किया है.

क्यों देखें

मसाला फिल्मों के शौकीन को यह फिल्म देखनी चाहिए. कहानी आपको विक्रम-बेताल की मॉर्डन दुनिया में लेकर जाती है. ऋतिक के फैंस के लिए तो यह फिल्म किसी ट्रीट से कम नहीं है. यह कहना गलत नहीं होगा कि मसाला फिल्म के मानकों पर यह फिल्म सौ प्रतिशत खरी उतरती है. साउथ की यह अच्छी रीमेक है. इस वीकेंड पॉपकॉर्न के साथ इसे एंजॉय कर सकते हैं

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